Sunday, May 14, 2006

Faasle Aise Bhee Honge...

Category : Ghazal
Performers : Ghulam Ali

ना उड़ा यूँ ठोकरों से मेरी खाक कब्र ऍ ज़ालिम
यही एक रह गयी है मेरे प्यार की निशानी


फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था...
सामने बैठा था मेरे, और वो मेरा न था ॥

वो कि खुश्बू की तरह फैला था मेरे चारसूँ...
मैं उसे महसूस कर सकता था, छू सकता न था ॥

रात भर पिछ्ली ही आहट कान में आती रही...
झाँक कर देखा गली में, कोई भी आया न था ॥

याद करके और भी तक़लीफ़ होती थी अदीं...
भूल जाने के सिवा अब कोइ भी चारा न था ॥
Source : Heard and Typed!

1 comment:

Anonymous said...

Waah...Waah...

Atul