Performers : Ghulam Ali
ना उड़ा यूँ ठोकरों से मेरी खाक कब्र ऍ ज़ालिमSource : Heard and Typed!
यही एक रह गयी है मेरे प्यार की निशानी
फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था...
सामने बैठा था मेरे, और वो मेरा न था ॥
वो कि खुश्बू की तरह फैला था मेरे चारसूँ...
मैं उसे महसूस कर सकता था, छू सकता न था ॥
रात भर पिछ्ली ही आहट कान में आती रही...
झाँक कर देखा गली में, कोई भी आया न था ॥
याद करके और भी तक़लीफ़ होती थी अदीं...
भूल जाने के सिवा अब कोइ भी चारा न था ॥
1 comment:
Waah...Waah...
Atul
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